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शे'र
नहीं बंदा हक़ीक़त में समझ असरार मा'नी काख़ुदी का वहम बरहम ज़न पिछे बे-ख़ुद ख़ुदाई कर
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
क्यूँ-कर न क़ुर्ब-ए-हक़ की तरफ़ दिल मिरा कीजिएगर्दन असीर-ए-हल्क़ा-ए-हबल-उल-वरीद है
बेदम शाह वारसी
शे'र
तू और ज़रा मोहकम कर ले पर्दों की मुकम्मल बंदिश कोऐ दोस्त नज़र की गर्मी को हम आज शरारा करते हैं
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूनी
शे'र
ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर